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Saturday 9 March 2013

एक 'पुनीत' आत्मा को नमन


दादी-नानी से सुनी होंगी तुमने कई कहानी,
पर आज सुनाता हूँ मैं तुम्हे मेरी दादी की ही कहानी।
एक प्रिंसिपल साहिबा थीं जैसे रानी, नहीं चलने देती किसीकी मनमानी,
था रुतबा ऐसा की इज्ज़त करते थे सब, हर काम हो जाता था एक नज़र देख लेती थीं जब।

काम के साथ-साथ परिवार के लिए भी थीं कर्तव्यनिष्ठ,
नहीं होने दिया किसीको संस्कारों से वंचित,
दादाजी का भी खूब साथ निभाया और सफलतापूर्वक अपने सेवानिवृत्त जीवन में कदम बढ़ाया।

 कुछ ही महीनों बाद हुआ एक नन्हा, जिसे सबसे ज़्यादा मिली उनकी गोद की ममता,
पगतलियों पे उसकी हाथ फेरना लगता था उन्हें प्रिय, दाना-मेथी उनके हाथों की खाना थी नन्हे को प्रिय।

बड़ा हुआ वो नन्हा तो लेता था उनसे हिंदी का ज्ञान और साथ बैठ के देखता था T.V. के Programme,
वक़्त गुज़रा तब वो नन्हा उन्हें समय न दे पाया, क्योंकि बड़ा हो गया है, ऐसा उसके दिमाग में आया।
वृद्धावस्था में घट रही रही थी उनके मस्तिष्क की काया, ये उसे समझ न आया,
देना चाहिए था उन्हें और समय, ये तब जान पाया,
जब हो नहीं सकता था उनका कोई इलाज,
जब कोई काम नहीं कर पाता था उनके दिमाग पर राज।

खड़ी हो जाती थी वो दरवाज़े पर तो रोक लेता था उन्हें,
कभी कहीं चलने लगती तो टोक देता था उन्हें,
बस इतना ही ख्याल रख पाया, कि उन्हें किसी भी मुश्किल स्थिति में आने से बचाया।

पर नहीं पता था कि  मुश्किलें उनकी और बढ़ जाएँगी,
अभी कम-से-कम चलती-फिरती तो थीं, फिर अचानक यूँ बिस्तर पर आ जाएँगी।

जब पकड़ के ले जाना पड़ता था उन्हें गुसलखाने,
तब याद आती थी उनकी डांट कि,
"मेरे cushion covers ख़राब किये तो पड़ जायेंगे तुम्हें कान पकड़वाने"

पीड़ा अत्यंत हुई जब देखा उनके शरीर में लगते तारों को, नलियों को,
बहुत नियंत्रण करके आँखों में आँसू आने से बचाया,
उनके अंतिम क्षण में भी उनके हाथों पर अपने हाथ फेर कर आया।

जब कंधा दिया उनकी अर्थी को तो अनुभूत हुआ,
कि ये बोझ उनको पकड़ के खिसकाने के बोझ से कहीं भारी था।
अब जब भी देखता हूँ उनकी तस्वीर, तो कर लेता हूँ उनसे बात,
बताता हूँ कि क्या चल रहा है, मेरे और सबके दिन-रात।

दुःख जो वो सह रही थीं, वो असहनीय था,
उनके लिए भी और सबके लिए भी।
याद आती है उनकी 'दुर्लभ' मुस्कुराहट जब दादाजी उन्हें सुनाते थे
'you are my Soniya' या 'तुम्ही मेरी देवी हो' जैसी lines,
लगता था कि ये smiles बनी रहें for miles!!

पर अच्छा किया ईश्वर जो उन्हें पीड़ा से मुक्त करवाया,
अब रह गयी है ह्रदय में उनकी 'पुनीत' काया,
कामना है यही कि बनी रहे सब पर उनकी छाया।

महिला दिवस पर उस नारी को नमन,
जो, दुआ है, बनती रहे मेरी ही दादी हर जन्म !!

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